मनोविज्ञान की सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली शख्सियतों में से एक सिगमंड फ्रायड हैं। वे एक ऑस्ट्रियाई न्यूरोलॉजिस्ट थे, जिनका जन्म 1856 में हुआ था। उन्हें “आधुनिक मनोविज्ञान का जनक” कहा जाता है। फ्रायड ने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सोचने और उसे समझने के तरीके को बदल दिया। उन्होंने साइकोएनालिसिस (मनोविश्लेषण) की शुरुआत की, जिसमें मरीजों की बातों को ध्यान से सुनकर उनके दिमाग को समझने का प्रयास किया जाता है। यह तरीका आज भी मनोविज्ञान और मनोचिकित्सा पर गहरा प्रभाव डालता है। सिगमंड फ्रायड के सिद्धांतों ने हमारे सपनों, बचपन, व्यक्तित्व, स्मृति, सेक्सुअलिटी और थेरेपी को समझने के नजरिए को आकार दिया। उनके काम ने अन्य विचारकों को नई सोच विकसित करने का आधार दिया, जबकि कुछ ने उनके विचारों के खिलाफ नई थ्योरी बनाई।
सिगमंड फ्रायड (1856-1939) साइकोएनालिसिस के संस्थापक थे। यह मानसिक बीमारियों का इलाज करने और मानव व्यवहार को समझाने का एक तरीका है। फ्रायड का मानना था कि हमारे बचपन की घटनाएं हमारे व्यक्तित्व और वयस्क जीवन पर गहरा असर डालती हैं। उदाहरण के लिए, बचपन के किसी दर्दनाक अनुभव से पैदा हुई चिंता हमारे दिमाग के अंदर छुपी रहती है और वयस्कता में समस्याएं (न्यूरोसिस) पैदा कर सकती है। हम जब अपने व्यवहार को खुद या दूसरों को समझाते हैं, तो अकसर हम अपनी असली प्रेरणा नहीं बताते। यह झूठ बोलने की बात नहीं है, बल्कि इंसान खुद को धोखा देने में माहिर होता है। फ्रायड का जीवन कार्य इस बात को समझने में लगा रहा कि कैसे हमारे व्यक्तित्व की छिपी हुई संरचनाएं और प्रक्रियाएं खुद को ढंक लेती हैं और सतह पर नहीं दिखतीं।
अचेतन (Unconscious) की थ्योरी
फ्रायड की अचेतन की थ्योरी यह कहती है कि हमारा व्यवहार किसी न किसी मानसिक प्रक्रिया या स्थिति से तय होता है, जो अक्सर छिपी होती है। 19वीं सदी के विज्ञान में चीजों को कारण और प्रभाव से समझाने पर जोर दिया जाता था, और फ्रायड ने इस सिद्धांत को मानसिक क्षेत्र में लागू किया। उन्होंने कहा कि इंसानी व्यवहार-जिसमें मानसिक बीमारियां भी शामिल हैं, ऐसा नहीं है जिसे समझा न जा सके। इसे समझने के लिए व्यक्ति के दिमाग की छिपी हुई मानसिक स्थितियों का पता लगाना जरूरी है। फ्रायड के अनुसार जुबान फिसलना, अजीब आदतें और सपने- ये सभी छिपे हुए कारणों से होते हैं। ये हमारे दिमाग के ऐसे हिस्से को दिखाते हैं, जिसे हम सीधे नहीं समझ पाते। उन्होंने यह भी कहा कि जब हम कोई निर्णय लेते हैं, तो हमें लगता है कि हम पूरी तरह आज़ाद हैं, लेकिन असल में हमारे फैसले छिपी हुई मानसिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होते हैं, जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता।
फ्रायड ने यह भी कहा कि हमारा पूरा दिमाग केवल वही नहीं है जो हम जानते या महसूस करते हैं। इसका बड़ा हिस्सा अचेतन होता है, जिसे समझने के लिए गहराई से विश्लेषण (psychoanalysis) करना पड़ता है। उन्होंने दिमाग की तुलना हिमशिला (iceberg) से की, जिसका बड़ा हिस्सा पानी के नीचे छिपा रहता है और केवल छोटा हिस्सा दिखाई देता है।
मनो-यौन (Psychosexual) विकास के चरण
सिगमंड फ्रायड ने मनो-यौन (psychosexual) विकास के चरणों का सिद्धांत दिया, जो उनके यौन प्रेरणा (sexual drive) सिद्धांत का मुख्य भाग है। फ्रायड के अनुसार, यौन प्रेरणा मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है, जो बच्चों और शिशुओं में भी होती है। उनके अनुसार, यौनता (sexuality) केवल संभोग नहीं है, बल्कि त्वचा से मिलने वाला कोई भी आनंद है। जीवन के अलग-अलग समय में शरीर के अलग-अलग हिस्से से सबसे ज्यादा आनंद मिलता है।
फ्रायड ने विकास के पांच चरण बताए, और हर चरण में एक खास हिस्सा (erogenous zone) आनंद का मुख्य स्रोत होता है। ये चरण हैं:
- मौखिक चरण (Oral Stage): यह चरण जन्म से लेकर लगभग 18 महीने तक रहता है। इस समय बच्चे को सबसे ज्यादा आनंद मुंह से जुड़ी चीजों, जैसे स्तनपान, चूसने, काटने, और निगलने से मिलता है। मां का स्तन बच्चे के लिए भोजन और प्यार का स्रोत होता है। इस चरण में जरूरतों की पूर्ति बच्चे में आत्मनिर्भरता और विश्वास पैदा करती है।
- गुदा चरण (Anal Stage): यह चरण लगभग 18 महीने से लेकर 3-4 साल की उम्र तक रहता है। इस दौरान आनंद का स्रोत गुदा क्षेत्र (anus) से जुड़ा होता है। बच्चों को मल त्याग और उसे रोकने से आनंद मिलता है। इस समय समाज बच्चों को सिखाता है कि कब, कहां और कैसे मल त्याग करना है। यह चरण बच्चों को नियंत्रण और अनुशासन का महत्व सिखाता है।
- लिंगीय चरण (Phallic Stage): यह चरण 3-4 साल की उम्र से लेकर 5-6 साल की उम्र तक रहता है। इस समय बच्चे अपने शरीर के अंगों को समझने लगते हैं और दूसरों के शरीर को लेकर जिज्ञासा दिखाते हैं। इस चरण में बच्चों को विपरीत लिंग के माता-पिता के प्रति आकर्षण और अपने ही लिंग के माता-पिता से ईर्ष्या महसूस हो सकती है। यह चरण मनो-यौन विकास का सबसे चुनौतीपूर्ण समय होता है।
- अवरोधक चरण (Latency Stage): यह चरण 5-6 साल की उम्र से किशोरावस्था (puberty) तक चलता है। इस समय यौन इच्छाएं दब जाती हैं, और बच्चे पढ़ाई, शौक, सामाजिक जीवन, और दोस्ती में रुचि लेते हैं। इस चरण में बच्चे समाज के नियम और मूल्य अपनाना सीखते हैं। हालांकि, अगर बच्चे इस ऊर्जा को सही दिशा में नहीं लगा पाते, तो समस्याएं हो सकती हैं।
- जननांग चरण (Genital Stage): यह चरण किशोरावस्था से शुरू होकर वयस्कता तक चलता है। इस समय यौन इच्छाएं फिर से सक्रिय हो जाती हैं। आनंद का स्रोत अब परिपक्व यौन संबंध और जिम्मेदारी होती है। यह चरण प्रेम संबंध, परिवार बनाने और वयस्क जीवन की जिम्मेदारियों को अपनाने का समय है। अगर इस चरण में कोई समस्या होती है तो इसका कारण शुरुआती चरणों में हुई परेशानियां होती हैं।
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मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) थेरेपी
सिगमंड फ्रायड ने यौन कारणों से होने वाले मानसिक विकारों (neuroses) को समझते हुए उनके इलाज के लिए एक क्लीनिकल उपचार विकसित किया। आज इसे “मनोविश्लेषण” (psychoanalysis) कहा जाता है। यह न केवल उपचार की विधि है, बल्कि इसके पीछे का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि दिमाग के तीन हिस्सों (इड, ईगो, और सुपरेगो) के बीच संतुलन स्थापित किया जाए, जो अचेतन (unconscious) में दबे हुए मानसिक संघर्षों को हल करने से संभव है।
उपचार की प्रक्रिया
फ्रायड ने एक ऐसी विधि विकसित की जिसे “टॉकिंग क्योर” (बातचीत के जरिए उपचार) कहा गया। उन्होंने यह पाया कि जब मरीज अपने लक्षणों और कल्पनाओं के शुरुआती अनुभवों के बारे में खुलकर बात करते हैं, तो उनके लक्षण कम हो जाते हैं।
- फ्री असोसिएशन (Free Association): मरीज को आरामदायक स्थिति में रखा जाता है (जैसे सोफे पर लेटना), जहां बाहरी ध्यान भंग करने वाले कारक कम हों। उन्हें बिना सोचे-समझे अपनी बात कहने के लिए प्रेरित किया जाता है। फ्रायड ने माना कि ऐसा करने से अचेतन में छिपे विचार और भावनाएं सतह पर आ सकती हैं।
- सपनों का विश्लेषण (Dream Analysis): फ्रायड ने कहा कि सपनों में अचेतन इच्छाएं और दबे हुए विचार सामने आते हैं। उन्होंने सपने के “स्पष्ट विषय” (जो सपने में दिखता है) और “गुप्त विषय” (जो वास्तव में सपना कहता है) के बीच अंतर बताया। सपनों, जुबान फिसलने और मरीज की बातों का सही विश्लेषण करके अचेतन संघर्षों का पता लगाया जा सकता है।
- रोग प्रतिरोध (Resistance): कभी-कभी मरीज उपचार का विरोध करते हैं या मनोविश्लेषक से नाराजगी दिखाते हैं। फ्रायड इसे सही दिशा में आगे बढ़ने का संकेत मानते थे।
उपचार का लक्ष्य
मनोविश्लेषण का मुख्य उद्देश्य मरीज को खुद को समझने में मदद करना है। जब मरीज अपने अचेतन में दबे संघर्षों को पहचानता और उनसे निपटता है, तो यह उपचार का अहम हिस्सा होता है।
- कैथार्सिस (Catharsis): यह दबी हुई मानसिक ऊर्जा (psychic energy) को बाहर निकालने की प्रक्रिया है। यही दबी हुई ऊर्जा मानसिक विकार का कारण बनती है।
- सब्लिमेशन (Sublimation): यौन ऊर्जा को सामाजिक, कलात्मक, या वैज्ञानिक लक्ष्यों में बदलना। फ्रायड ने इसे महान सांस्कृतिक उपलब्धियों का आधार माना।
- दमन (Suppression): पहले दबे हुए विचारों और इच्छाओं को पहचानकर उन पर नियंत्रित पाना।
व्यक्तित्व की संरचनात्मक मॉडल (आईडी, ईगो और सुपरेगो)
सिगमंड फ्रायड के अनुसार, मानव व्यक्तित्व तीन मुख्य भागों से मिलकर बना होता है: ईड (Id), ईगो (Ego) और सुपरेगो (Superego)। ये तीनों हिस्से मिलकर हमारी जटिल भावनाओं और व्यवहारों को नियंत्रित करते हैं। इनका संतुलन बनाना बहुत जरूरी है ताकि हमारी मानसिक ऊर्जा सही तरीके से काम करे और हमारा मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे।
- ईड (Id): ईड हमारे व्यक्तित्व का वह हिस्सा है, जो जन्म से ही मौजूद होता है। यह हमारे मूलभूत जरूरतों को तुरंत पूरा करने पर ध्यान देता है। यह “सुख सिद्धांत” (Pleasure Principle) पर काम करता है, जिसका मतलब है कि यह बिना किसी वास्तविकता की परवाह किए तुरंत इच्छाओं को पूरा करना चाहता है। ईड स्वार्थी और तात्कालिक संतुष्टि पर केंद्रित होता है।
उदाहरण: छोटे बच्चे केवल अपनी जरूरतों (भूख, नींद) के बारे में सोचते हैं और समय या दूसरों की परिस्थितियों की परवाह नहीं करते।
- ईगो (Ego): ईगो वास्तविकता के सिद्धांत (Reality Principle) पर काम करता है। इसका उद्देश्य है कि इच्छाओं को उचित समय और स्थिति में पूरा किया जाए। ईगो “व्यक्तित्व का प्रबंधक” कहलाता है क्योंकि यह तर्क के आधार पर निर्णय लेता है। यह ईड और सुपरेगो के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है।
उदाहरणः अगर किसी को भूख लगी है, तो ईगो यह सुनिश्चित करेगा कि खाना चोरी करने के बजाय सही समय पर खरीदा जाए। ईगो तर्कसंगत सोच और दीर्घकालिक परिणामों पर ध्यान देता है।
- सुपरेगो (Superego): सुपरेगो हमारे नैतिक और सामाजिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। यह सही और गलत का ख्याल रखता है और हमें नैतिक रूप से सही काम करने के लिए प्रेरित करता है। जब हम सामाजिक या नैतिक नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो सुपरेगो हमें दोषी महसूस कराता है।
उदाहरणः गलत काम करने पर अपराधबोध (guilt) महसूस होना सुपरेगो की वजह से होता है। यह समाज में स्वीकार्य तरीकों से व्यवहार करने में मदद करता है।
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तीनों के बीच संघर्ष
- ईड तात्कालिक इच्छाओं और खुशी पर केंद्रित होता है।
- सुपरेगो नैतिकता और सामाजिक नियमों पर ध्यान देता है।
- ईगो इन दोनों के बीच संतुलन बनाता है और वास्तविकता के अनुसार फैसले लेता है।
- एक स्वस्थ व्यक्ति में ईगो सबसे मजबूत होता है ताकि वह ईड और सुपरेगो दोनों की जरूरतों को पूरा कर सके और साथ ही वास्तविकता को भी ध्यान में रख सके।
- यदि ईड बहुत मजबूत हो जाए, तो व्यक्ति स्वार्थी और आवेगी हो सकता है।
- अगर सुपरेगो ज्यादा शक्तिशाली हो जाए, तो व्यक्ति बहुत कठोर और नैतिक रूप से अड़ियल हो सकता है।
इस तरह फ्रायड के अनुसार, व्यक्तित्व के तीनों हिस्सों का सही संतुलन हमारी मानसिक और भावनात्मक स्थिरता के लिए जरूरी है।
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