करियर वर्सेज फैमिली? महिलाओं के लिए ये चुनाव क्यों मानसिक बोझ बन जाता है
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करियर वर्सेज फैमिली? महिलाओं के लिए ये चुनाव क्यों मानसिक बोझ बन जाता है

करियर वर्सेज फैमिली? महिलाओं के लिए ये चुनाव क्यों मानसिक बोझ बन जाता है

आज के समय में महिलाएं शिक्षा, करियर और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर रही हैं। वे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर, आईएएस, बिजनेसवुमन जैसी अनेक भूमिकाएं सफलता से निभा रही हैं। फिर भी, जब बात परिवार और करियर के बीच चुनाव की आती है, तो अधिकांश महिलाओं को ऐसा लगता है जैसे उन्हें एक को चुनना ही होगा- या तो घर या काम। यह निर्णय उनके लिए सिर्फ व्यावहारिक नहीं, बल्कि गहरे मानसिक और भावनात्मक दबाव का कारण बन जाता है।

समाज की अपेक्षाएं, पारिवारिक दबाव, आत्मग्लानि और भूमिका-संघर्ष ये सभी मिलकर इस चुनाव को मानसिक बोझ बना देते हैं। यह लेख इस मु‌द्दे के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक पहलुओं की पड़ताल करता है और समझने की कोशिश करता है कि क्यों महिलाओं के लिए “करियर वर्सेज फैमिली” का चुनाव आज भी इतना जटिल बना हआ है।
ऐसे सवालों का बोझ महिलाओं को भीतर से तोड़ सकता है। इस लेख में हम विश्लेषण करेंगे कि यह मानसिक बोझ किन कारणों से बनता है और इससे बाहर निकलने के क्या संभावित रास्ते हो सकते हैं।

सामाजिक संरचना और पितृसत्ता की जड़ेंः

भारतीय समाज अब भी एक हद तक पारंपरिक और पितृसत्तात्मक ढांचे में बंधा हुआ है। महिलाओं की प्राथमिक पहचान अब भी “पत्नी”, “मां” या “बहन” के रूप में ही देखी जाती है, जबकि पुरुषों की पहचान “कमाने वाले” या “परिवार के प्रमुख” के रूप में होती है। जब कोई महिला नौकरी करती है, तो उसे परिवार की ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ पेशेवर ज़िम्मेदारियां भी निभानी पड़ती हैं- लेकिन, पुरुषों से आमतौर पर यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे घर के कामों में बराबरी से हिस्सेदारी निभाएं। इस असंतुलन के कारण महिलाओं पर दोगुना मानसिक दबाव पड़ता है। उन्हें बार-बार यह साबित करना पड़ता है कि वे अच्छी मां, बहू और पत्नी भी हैं और एक सफल प्रोफेशनल भी।

पारिवारिक और सामाजिक दबावः

अक्सर परिवार और समाज महिलाओं को यह बताता है कि करियर एक वैकल्पिक चीज़ है, जबकि परिवार मुख्य ज़िम्मेदारी है। शादी के बाद अक्सर महिलाएं अपने करियर में ब्रेक लेती हैं, और जब वे दोबारा शुरू करना चाहती हैं, तो उन्हें कहा जाता है- “अब क्या ज़रूरत है?”, “बच्चों को ज़्यादा ज़रूरत है तुम्हारी”। यह दबाव किसी स्पष्ट आदेश के रूप में नहीं आता, बल्कि व्यवहार, तानों और उम्मीदों के रूप में धीरे-धीरे उनके मन में बैठ जाता है। नतीजतन, वे लगातार आत्मसंदेह और मानसिक थकान का शिकार होने लगती हैं।

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आर्थिक निर्भरता और आत्मनिर्भरता का द्वंद्व:

जब महिलाएं पूरी तरह से आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं, तो वे अपने फैसले अधिक दृढ़ता से ले सकती हैं। लेकिन जब परिवार का दबाव यह होता है कि “कमाने की ज़रूरत नहीं, पति कमा रहा है”, तो वह सोच धीरे-धीरे महिलाओं को यह यकीन दिलाने लगती है कि शायद करियर उनकी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए। परिणामस्वरूप, वे अपने सपनों और आकांक्षाओं को दबा देती हैं और अंदर ही अंदर मानसिक असंतोष से घिर जाती हैं।

माताओं को कभी-कभी काम को प्राथमिकता देने की आवश्यकता के कारण अपराधबोध महसूस हो सकता है:

कभी-कभी वह पदोन्नति या प्रोजेक्ट आपके बच्चे की आगामी परीक्षा से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है, और महिलाएं अपने करियर को प्राथमिकता देने के लिए खुद को दोषी और बुरा महसूस करती हैं। अगर आपको कुछ डेडलाइन पे करनी हैं तो काम को महत्व देना ठीक है। कार्यस्थल पर खराब प्रदर्शन के बाद जो असंतोष होगा, वह आपके निजी जीवन को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि आप इस समय जो भी भूमिका निभा रहे हैं, उसमें मानसिक रूप से मौजूद रहें।

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समर्थन की कमीः

महिलाओं को काम और घर के बीच संतुलन के लिए अधिक सहारे की ज़रूरत होती है जैसे क्रेच, फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स, मानसिक समर्थन, परिवार का सहयोग आदि। जब यह समर्थन नहीं मिलता, तो हर निर्णय उनका अकेला संघर्ष और मानसिक बोझ बनता है।

काम और परिवार में कैसे संतुलन बना सकते हैं?

काम की सूची बनाएँ:

काम में बहुत ज्यादा समय बर्बाद करने से बचने के लिए, हर दिन काम की सूची बनाएँ और काम पूरा होने पर उसे चेक करें। इससे आपको काम टालने से बचने में मदद मिलेगी, ताकि आप एक काम पूरा करने के बाद ही दूसरा काम शुरू कर सकें। क्या आपको लगता है कि आप कामों में डूब रहे हैं? हर बड़े काम को छोटे-छोटे कामों में बाँटने की कोशिश करें। जब आपको ज़रूरत हो, तो ब्रेक लें। अपने बॉस से बात करने या मदद माँगने से न डरें।

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परिवार के लोगों के साथ समय व्यतीत करें:

निश्चित समय पर शुरू और बंद करने के साथ दिनचर्या निर्धारित करने का प्रयास करें। घर से काम कर रहे हैं? आप अभी भी अपना कार्यदिवस समाप्त होने के बाद लैपटॉप को दूर रखने और फ़ोन को बंद करने का ध्यान रख सकते हैं। सुनिश्चित करें कि आपका परिवार मूल्यवान महसूस करे।

काम को बांटना सीखें:

हर काम खुद करने की ज़रूरत नहीं:

  • बच्चों को छोटी ज़िम्मेदारियां दें
  • पति से सहयोग मांगे
  • घर के कामों में मेड या घरेलू सहायक की मदद लें

खुद का ख्याल रखेंः

अगर आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगी, तभी आप परिवार और काम दोनों संभाल पाएंगी। रोज़ाना थोड़ा समय अपने लिए निकालें (जैसे योगा, किताबें, संगीत)
नींद पूरी लें, मन में अपराधबोध न पाले – आप इंसान हैं, मशीन नहीं |

निष्कर्षः

काम, परिवार और निजी जीवन एक दूसरे के पूरक होने चाहिए और एक दूसरे के साथ टकराव नहीं होना चाहिए। कुछ लोग अपने करियर में सफल होते हैं लेकिन पारिवारिक और निजी जीवन में असफल होते हैं, जबकि कुछ अन्य जिनका निजी और पारिवारिक जीवन जीवंत होता है, वे काम में औसत से नीचे होते हैं। जीवन के एक क्षेत्र में दूसरे की कीमत पर सफल होना एक स्वस्थ संकेत नहीं है। लंबे समय में, पारिवारिक खुशी और एक अच्छा निजी जीवन एक सफल करियर के प्रमुख निर्धारक हैं। एक ऐसा समाज बनाना ज़रूरी है जो महिलाओं को उनके पूरे अस्तित्व के साथ स्वीकार करे एक प्रोफेशनल, एक मां, एक बेटी, एक साथी सभी रूपों में।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

क्या महिलाएं करियर और परिवार दोनों में संतुलन बना सकती हैं?

उत्तरः-हां, बिल्कुल। हालांकि यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन समय प्रबंधन, परिवार का सहयोग और लचीलापन अपनाकर महिलाएं दोनों क्षेत्रों में सफल हो सकती हैं।

महिलाएं करियर छोड़ने का फैसला क्यों लेती हैं?

उत्तरः-कई बार पारिवारिक दबाव, बच्चों की देखभाल, कार्यस्थल पर लचीलेपन की कमी या मानसिक थकान के कारण महिलाएं करियर से ब्रेक लेती हैं या पूरी तरह छोड़ देती हैं।

क्या घर की ज़िम्मेदारियां सिर्फ महिलाओं की होती हैं?

उत्तरः- नहीं। परिवार की ज़िम्मेदारी दोनों जीवनसाथियों की होती है। संतुलन तभी संभव है जब पुरुष भी बराबर भागीदारी निभाएं।

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