कोरोनावायरस महामारी का जन-मानस पर प्रभाव : एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
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कोरोनावायरस महामारी का जन-मानस पर प्रभाव : एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

डॉ ऐरी क्रुगलेन्स्की ( Dr. Arie Kruglanski ) जाने-माने सामाजिक मनोवैज्ञानिक ( Social Psychologist ) हैं | वे अभी अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं | वे बताते हैं कि कोरोनावायरस मानव प्रेरणा और हमारे मानस को जिस तरह प्रभावित कर रहा है, इसे लोगों ने अभूतपूर्व वैश्विक स्थिति के रूप में कभी अनुभव नहीं किया | अधिकांश लोगों के लिए, यह महामारी पूरी तरह से अभूतपूर्व परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करती है | हाल के इतिहास की किसी भी घटना ने हमें गहराई से और व्यापक रूप से प्रभावित नहीं किया है।

यह महामारी न केवल हमें हमारी शारीरिक नाज़ुकता की याद दिलाती है बल्कि यह आर्थिक सुरक्षा को कमजोर करती है ; दैनिक दिनचर्या को अस्त-व्यस्त करती है; योजनाओं पर कहर बरपाती है; हमें दोस्तों और पड़ोसियों से अलग भी करती है।

डॉ क्रुगलेन्स्की बताते हैं कि कोरोनावायरस तीन प्रमुख चीजों को प्रभावित कर रहा है: हम कैसे सोचते हैं, हम दूसरों से कैसे संबंधित हैं, और हम क्या महत्व रखते हैं।

1. सुरक्षा के प्रति बदलती भावना

इस संकट ने अनिश्चितता तक पहुँचने के लिए हम सभी को प्रेरित किया है। हम नहीं जानते कि क्या सोचना है और कैसे इन अपरिचित परिस्थितियों का सामना करना है । कौन प्रभावित होगा? क्या हमारे प्रियजन? कितनी जल्दी? क्या परीक्षण उपलब्ध होंगे? क्या हम बचेंगे? यह कब तक चलेगा? हमारे काम के बारे में क्या? हमारी आमदनी?

अनिश्चितता और खतरे का संयोजन क्रोध को जन्म देता है । यह क्रोध निश्चितता को पाने की हमारी तीव्र इच्छा को पालता है | मनोवैज्ञानिक इसे ‘Need for Cognitive Closure’ कहते हैं | माने सटीक और स्पष्ट जवाब पाने की मानवीय इच्छा की आवश्यकता।

एक बार जागरूक होने के बाद, समाधान ढूंढने की हमारी आवश्यकता विश्वसनीय जानकारी की लालसा को बढ़ावा देती है जो हमें उलझा देती है। हम स्पष्टता और मार्गदर्शन को इस तरह खोजते हैं जैसे सुरंग के अंत में प्रकाश को खोजना हो | लेकिन यह वो सुरंग है जो इस क्षण अंत के बिना दिखाई देती है।

टीवी से चिपके हुए हम ब्रेकिंग न्यूज़ के दीवाने बन जाते हैं, इस उम्मीद के साथ कि अगली खबर के बाद हमें स्पष्टीकरण मिलेगा जो हमें इस बाधा से बचा देगा ।

इस दौर में लोग सरलीकृत समाधान खोजने लगते हैं | वैज्ञानिक दृष्टि और स्वास्थ्य निर्देशों को नज़रअंदाज़ करने लग जाते हैं | कुछ लोग इस बात से इंकार करते हैं कि कुछ भी गलत नहीं हुआ है या यह सब प्रकृति और ईश्वर के निर्देशानुसार हो रहा है | कुछ लोग अंधविश्वास का प्रचार करते हैं | अफवाहें व्यापक रूप से प्रसारित की जाती हैं और दूसरों द्वारा बिना शर्त जब्त भी कर ली जाती हैं।

यह वह समय है जहां स्थिर और आश्वस्त नेतृत्व की सख़्त जरूरत है। हमें यह बताया जाना चाहिए कि क्या करना है; सादा और सरल शब्दों में । यह जटिल विचार-विमर्श का समय नहीं है।

 

2. बदली हुई जरूरतें

जब समाधान ढूंढने की हमारी आवश्यकता बढ़ जाती है तब हम “समूह-केंद्रित” हो जाते हैं । जिसका अर्थ है कि हम सामंजस्य और एकता के लिए तरस रहे हैं।

अभी देशभक्ति ऊंचे स्तर पर है | हमें यह विचार आता है कि हमारा राष्ट्र दूसरों से बेहतर है | उस संकट से निपटने के लिए बेहतर है जिसे विदेशियों ने फैलाया है |

कोरोनावायरस महामारी डरावनी है। इससे हर कोई संक्रमित हो सकता है। किसी को छूट नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि समाज में आपकी क्या स्थिति है या कितनी शक्ति या लोकप्रियता है | यह वायरस अभी भी आपको मिल सकता है। यह संभावना नाज़ुकता और भेद्यता की भावना उजागर करती है। यह सामाजिक संबंधों को पहली प्राथमिकता पर रखने, दूसरों के प्रति लगाव को मजबूत करने, किसी के प्रियजनों, परिवार और दोस्तों की प्रशंसा को बढ़ावा देने का संकेत देती है।

महामारी के सामने हमारी बेबसी के परिणाम हैं हमारी अधिक समाजशीलता, प्रेम और मदद के लिए हमारी तड़प, यह अहसास कि हमें दूसरों की जरुरत है और हम इससे अकेले सामना नहीं कर सकते।

3. बदलते मूल्य

दूसरों के प्रति बढ़ते लगाव के साथ-साथ हमारी नैतिकताओं में एक सूक्ष्म बदलाव आता है।

सहयोग, विचार और देखभाल के सांप्रदायिक मूल्यों को प्राथमिकता दी जाती है जबकि प्रतिष्ठा, लोकप्रियता और शक्ति के व्यक्तिवादी मूल्य अपनी मोहर खोने लगते हैं ।

हमारे सांस्कृतिक आदर्शों का रूप बदलता है । संकट के समय में हम जश्न मनाते हैं और उन लोगों को ज्यादा महत्व देते हैं जो साम्यवादी मूल्यों की सेवा करते हैं, दूसरों की मदद करते हैं, सामान्य भलाई के लिए अपने स्वार्थ का त्याग करते हैं, सहानुभूति दिखाते हैं और मानवता का आदर्श बनते हैं।

प्रसिद्धि और धन के साथ मोह कम हो जाता है | इसके लिए हम ज़मीनी स्तर पर आते हैं और दयालुता के सरल कार्यों की प्रशंसा करते हैं |

कोरोनवायरस महामारी हमें और हमारे मानस के विविध पहलुओं को प्रभावित करती है।

हम कुछ परिवर्तनों को मंजूरी दे सकते हैं – मजबूत सांप्रदायिक बंधन और मानवीय मूल्यों की स्थापना ; और खुद को बेहतर और जागरूक करना | हम जिस भारी संकट का सामना कर रहे हैं वह हमारे भीतर से हमारे दोनों गुण बाहर लाता है : अच्छा भी और बुरा भी | चुनाव और सुधार दोनों हमारे हाथ में है |

( यह आलेख डॉ क्रुगलेन्सकी के लेख का संक्षिप्त रूप है। इका अनुवाद और इसे साझा करना डॉ क्रुगलेन्सकी की अनुमति से ही हुआ है।)

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