असामान्य व्यक्ति तथा उसके व्यवहार की पहचान कैसे कर सकते है ?
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असामान्य व्यक्ति तथा उसके व्यवहार की पहचान कैसे कर सकते है ?

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असामान्यता व्यवहार तथा उसकी गंभीरता को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक विभिन्न मानकों का प्रयोग करते है. वैसे तो मानसिक रोगी तथा असामान्य व्यवहार को अच्छी तरह समझने और पहचान करने के लिए विशेषज्ञ की मदद ली जाती है लेकिन आइये हम जानते है की किस मानकों के द्वारा वो ऐसे लोगो की पहचान करते है. इन मानकों के द्वारा हम भी अपने सम्बन्धी और अपनों की सही समय पर मदद कर सकते है.

(i) समाज-विरोधी व्यवहार (Antisocial Behaviour) – असामान्य व्यवहार सामान्य रूप से स्वीकृत नियमों, सामाजिक मानकों (Social norm) एवं मूल्यों (values) का विरोधी होता है। अर्थात् जब कोई व्यवहार इस ढंग का होता है कि उससे समाज के नियमों, मूल्यों तथा मानकों (norms) का अतिक्रमण होता है तो उसे असामान्य व्यवहार की श्रेणी में रखा जाता है। उदाहरणार्थ चोरी करना, हत्या, बलात्कार आदि कुछ ऐसे ही व्यवहार है जिससे सामाजिक मानक एवं मूल्यों का अतिक्रमण होता है। स्पष्टत: तब कहा जा सकता है कि असामान्य व्यवहार की एक प्रमुख विशेषता समाजविरोधी होना होता है ।

(ii) मानसिक असंतुलन (Mental Imbalance) – मानसिक असंतुलन भी असामान्यता का एक प्रमुख सूचकों में से एक है। ऐसे व्यक्तियों के व्यवहारों तथा विचारों में काफी अस्थिरता तथा असंगतता पायी जाती हैं। अर्थात वे अभी कुछ सोचते हैं तथा कुछ समय के बाद ठीक उसके विपरित सोचने लगते हैं और वे जब विपरित सोचते हैं तो ठीक पहले से उल्टा वे करना भी प्रारम्भ कर देते हैं।

(iii) अपर्याप्त समायोजन (Poor Adjustment) – अपर्याप्त समायोजन भी असामान्य व्यवहार का एक प्रमुख लक्षण है। ऐसे व्यक्ति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में घटिया समायोजन क्षमता का प्रदर्शन करते हैं। घटिया समायोजन क्षमता के कारण इन्हें परिवार तथा समाज से काफी तिरस्कार मिलता है। परिणामतः उनकी समस्या बढ़ती ही जाती हैं।

(iv) सूझपूर्ण व्यवहार की कमी (Lack of insightful behaviour) – असामान्य व्यक्तियों में सूझ की कमी का होना एक सामान्य लक्षण है। इसके कारण असामान्य व्यक्ति सही-गलत, अच्छा-बुरा, तथा नैतिक-अनैतिक में अन्तर करनें असमर्थ रहते हैं। इन्हें जिम्मेवारियों का भी एहसास नहीं होता। इस सबका परिणाम यह होता है। कि ऐसे व्यक्ति बिना किसी दोष-भाव एवं पश्चाताप के विभिन्न तरह के समाजविरोधी व्यवहार करते जाते है।

(v) विघटित व्यक्तित्व (Disorganized Personality) – विघटित व्यक्तित्व भी असामान्य व्यवहार का एक प्रमुख लक्षण है। विघटित व्यक्तित्व से तात्पर्य संज्ञानात्मक (Cognitive), क्रियात्मक (motor) एवं भावनात्मक (affective) पक्षों में ताल-मेल के अभाव से होता है। सचमुच में इनका व्यक्तित्व इतना अधिक भिन्न-भिन्न होता है कि उनके व्यवहारों में किसी तरह की संगतता (consistency) नहीं रह जाती बल्कि उनका व्यवहार इतना अविवेकी (irrational) तथा असंतुलित (unbalanced) हो जाता है उससे लोगों के लिए सही अर्थ निकालना संभव नहीं रह जाता है।

(vi) आत्मज्ञान तथा आत्म-सम्मान की कमी Lack of self knowledge and self-esteem) –  आत्म-ज्ञान से तात्पर्य अपने आप को तथा अपने दायित्वों को समझने से होता है । असामान्य व्यक्तियों अपने द्वारा किए जाने वाले व्यवहारों के कारणों एवं उसके परिणामों से अनभिज्ञ होते है। कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे व्यक्ति अपने योग्यताओं, क्षमताओं तथा अपनी जिम्मेवारियों को नहीं जानते हैं और ना ही मूल्यांकन कर पाते हैं। इसके अलावे असामान्य व्यक्तियों में आत्म सम्मान (Self esteem) की भी कमी देखने को मिलती है ऐसे व्यक्ति अपने आप को अनादर एवं हीनता के भाव से देखते हैं और विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में वे अपने आप को अपअनुकूलित (Maladapted) पाते हैं।

(vii) असुरक्षा की भावना (Feeling of insecurity) – असामान्य व्यक्ति अपने आप को काफी असुरिक्षत महसूस करते हैं। प्राय: ऐसे व्यक्ति अपने आप को समाज का एक स्वीकृत हिस्सा (accepted part) नहीं मानते है। इनमें शक इतनी जबरदस्त होती है कि सभी लोगों को शक की निगाह से ही देखते हैं और कभी भी अपने आप को सामाजिक परिस्थिति में खुलकर उपस्थित नहीं कर पाते । ऐसे व्यक्ति प्राय: डरे सहमें जीवन गुजारते हैं।

(viii) संवेगात्‍मक अपरिपक्वता (Emotional Immaturity) – असामान्य व्यक्तियों के व्यवहार से इस बात को स्पष्ट झलक मिलती है कि इनको सांवेगिक परिपक्वता का अभाव है। सांवेगिक परिपक्वता से तात्पर्य संवेगों पर नियंत्रण रखने तथा परिस्थिति के अनुकूल संवेगों की अभिव्यक्ति करने से होता है। अकारण हँसना, अकारण ही दो देना इनकी आदत सी होती हैं। इन सबका संयुक्त परिणाम यह होता है कि सांवेगिक समायोजन (emotional adjustment) में उन्हें भयंकर समस्या का सामना पड़ता है।

(ix) सामाजिक अनुकूलन की क्षमता का अभाव (Lack of social adaptability)– सामाजिक कुसमायोजन भी असामान्य व्यक्तियों का एक प्रमुख लक्षण है। ऐसे लोग अपने परिवार, समाज, सहकर्मियों के साथ संतोषजनक सम्बंध बनाकर रखने में असमर्थ होते हैं। चूँकि इनमें सांवगिक स्थिरता (emotional stability) का अभाव होता है परिणामतः इनकी मानसिक अवस्थाओं से हमेशा परिवर्तन होते रहता है। अत: उनका सामाजिक सम्बंध दोषपूर्ण हो जाता है।

(x) तनाव एवं अतिसंवेदनशीलता (Tension and Hypersensitivity)– असामान्य व्यक्तियों का व्यवहार तनावपूर्ण एवं संवेदनशील भी होता है। ऐसे व्यक्तियों को अपने संवेग एवं भाव पर कोई नियंत्रण नहीं होता है जिससे प्रायः इनमें मानसिक तनाव की स्थिति बनी रहती हैं। इन सबका संयुक्त परिणाम यह होता है कि इनमें ध्यान- अन्यमनस्यकता (Distraction of attention) की स्थिति उत्पन्न रहती है । और वे किसी कार पर अपने ध्यान को केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। ऐसे व्यक्ति किसी साधारण सी घटना से भी इतना अधिक उत्तेजित हो जाते हैं कि वे हमेशा बेचैन दिखलाई पड़ते हैं और उनके व्यवहार में नियमितता (regularity) तथा प्रासंगिता (relevance) समाप्त हो जाता है ।

(xi) पश्चाताप का अभाव (Lack of Remorse) – चूक असामान्य व्यक्तियों में सूझ का अभाव होता है अत: वे किसी भी तरह के अनतिक कार्यों को बिना किसी पश्चाताप या दोष भाव के करते जाते हैं। अर्थात अपने द्वारा किए गये भूल एवं गलतियों से अनभिज्ञ रहते हैं। यहाँ तक कि ऐसे कार्यों के लिए दण्ड पाने के बावजूद इन्हें अपनी गलती का एहसास नहीं होता है।

असामान्य व्यक्तियों द्वारा किया गया व्यवहार जिसे असामान्य व्यवहार कहा जाता है कि अपनी कुछ अलग ही विशेषताएँ होती है जिसके आधार पर असमान्यता की गंभीरता तथा उसके प्रकार को समझने में काफी मदद मिलती हैं।

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