Entertain Hindi

बाधाओं से भरा चिंटू का बर्थडे

आलसी स्वाभाव कल से हावी है तो सोचा चलो इस मौसम का लुफ्त उठाया जाये क्योकि ये आलसपन बहुत जतन के बाद आया है सो बैठ गया एक फिल्म देखने लेकिन जैसा सबके साथ होता होगा, ढेरो विकल्प के बीच फिल्म का चुनाव, देखने से ज्यादा समय लेता है, आखिरकार Zee 5 पर विनय पाठक के पोस्टर के साथ एक मासूम सा शीर्षक दिखा “चिंटू का बर्थडे” और निर्णय लिया कि यही देखा जाए। फिल्म मेरे उम्मीद के अलग तो है ही,अचम्भित भी करती है और भावनाओं का मिश्रण समानांतर कदमचाल करता है. एक बेहतरीन फिल्म. फिल्म का एक मैथिली लोकगीत, जो बचपन में ना जाने कितनी बार गुनगुनाया होगा थोड़े परिवर्तन के साथ सुनकर ऐसा लगा मानो समय का सदुपयोग हो गया. मन कह उठा कि फिर से वो ज्येठ की दोपहरी आ जाये और फिर मैना/ कोयल से विनती करूँ वो मेरे लिए जामुन गिराए..

“कोयली के बच्चा टिकुलिया गे दू जो जामुन गिरा,

कच्चा कच्चा गिरतो ते मारबो गे, दू गो कारिका गिरा।

(एक बच्चे का कोयल से जामुन तोड़कर गिराने का मासूम सा फ़रियाद और धमकी भी कि कच्चा जामुन मत गिराना कोयल/मैना नहीं तो पीटूंगा मै तुम्हे। यह फ़रियाद बच्चे की मासूमयियत दर्शाने के साथ ही प्रकृति के प्रति संवेदन होना भी सिखाती है।)

मै कोई समीक्षक तो नहीं कि फिल्म की तकनीकी बारीकियों को समझ पाऊँ, ज्यादातर लोगो की तरह फिल्म दिल में कितनी गहराई तक उतरी उसी से फिल्म कितनी अच्छी है मै भी इसकी समझ विकसित करता हूँ। एक मनोवैज्ञानिक से “दिल की गहराई” की बात अटपटी सी लगती है लेकिन जिंदगी को हर लम्हो को पैमाने में तौला तो नहीं जा सकता ना, इसलिए इसे भावनात्मक दृष्टिकोण से ही परखे। इराकी गृहयुद्ध के पृष्भूमि में एक सामान्य भारतीय परिवार की एक मामूली ख्वाहिश और मानवीय मूल्यों का एक रेखांकन इस फिल्म को गैर-मामूली बनाती है वो भी बड़ी सरलता से बिना किसी फ़िल्मी उतार चढ़ाव के या यूँ कहे तो बनावटी जोड़-तोड़ के। चिंटू ने अपना बर्थडे मनाया या नहीं या क्या मुश्किलें आयी इसके लिए तो आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

Photo Credit: https://www.arre.co.in/

Exit mobile version